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Dhat Syndrome Treatment in Noida

About Dhat Syndrome (धातु दोष) Treatment in Noida

धातु रोग – लक्षण कारण एवम् उपचार !

धातुरोग का डर वर्षों से पुरुषों के मन में बैठ हुआ है और आज भी इसका मुख्य कारण है कामविज्ञान की पूरी शिक्षा का आभाव | शर्म के कारण कोई भी एक दूसरे से बात करने से शर्माता हैं | उपर से नीम-हकीमों ने इतनी ग़लत धारणाएँ फैला रखी हैं कि पुरुषो के मन में धातुरोग का दर पूरी तरह से बैठ गया है |

इसी डर का लाभ उठाकर विभिन्न नीम हकीम अपने पास आनेवाले रोगी को प्राय: धातुरोग बताकर अच्छा ख़ासा पैसा वसूल कर लेते हैं | इसी विषय को मान में रखकर यह लेख लिखा गया है |

धातुरोग के बारे में बताने से पहले धातु (वीर्य) के बारे में जानकारी देना ज़्यादा ज़रूरी हैं | आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर सात धातुओं से बना है | रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा व शुक्र धातु (वीर्य) | जो भी खाना पीना हम खाते हैं उससे पहले रस बनता है फिर बाकी धातुएँ तो जितना पौष्टिक हमारा आहार होगा उतनी ही पुष्ट धातु बनेगी एवम् हमारा शरीर भी उतनाही, पुष्ट बनेगा | परंतु अगर किसी कारण से यह धातु शरीर से निकलने लगे तो हमारा शरीर भी उतना ही कमजोर होता जाएगा |
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धातु रोग परिचय :-

मैथुन की इच्छा के बिना जब पुरुष मल अथवा मूत्र का त्याग करते हैं उस समय कभी कभी या हमेशा उनकी इंद्रिय में से एक पानी जैसा तरल अथवा पतले दूध जैसा अथवा कच्ची लस्सी जैसा परंतु चिपचिपा पदार्थ निकलता है तो इसे धातु रोग कहा जाता है | इसे वीर्यप्रमेह, प्रेमह, शुक्रमेह, जिरयान एवम् Spermatorrhoea आदि नामों से भी जाना जाता है |

धातुरोग का कारण :-

आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रंथ भैषज्य रत्नावली के अनुसार योडवशी कुरूते मुढ़ोसविधिना रेतस:क्षयम् |

अर्थात जो मूर्ख पुरुष अपने मन को वश में नही रख पाता इसलिए अत्याधिक हस्तमैथुन करता है अथवा अन्य कारणों से जैसे कि पशुमैथुन, वेश्यागमन, मुखमैथुन अथवा ज़्यादा मैथुन करके वीर्य नाश करता है उसे यह शुक्रमेह (धातुरोग) हो जाता है |

कभी कभी आहार विहार के दूषित होने से, ज़्यादा देर बैठे रहने से, ज़्यादा सोने से, ज़्यादा मिर्च, खट्टे पदार्थ, तीखे पदार्थ के सेवन से, पाचनशक्ति की कमज़ोरी से, ज़्यादा सिगरेट, बीड़ी, तंबाकू, चरस, गांजा, माँसाहार, दारू इत्यादि के सेवन से (जिससे कि शरीर में वात एवम् पित्त बढ़ जाता है) इसके अलावा हमेशा सैक्स संबंधी विचारों को सोचते रहना, उत्तेजक एवम् गर्म पदार्थों का ज़्यादा सेवन करना, वीर्य में गर्मी ज़्यादा होना, वीर्य का पतला होना, वीर्य का ज़्यादा मात्रा में बनना, वीर्य की थैली में दोष होना, अत्याधिक स्वप्नदोष होना, पेट में कृमि (कीड़े) होना, ज़्यादा देर तक संभोग न करना, कब्ज का होना, एवं इंद्रिय पर खुजली का होना भी धातुरोग को उत्पन्न करता है |

धातुरोग के रोगी के सामान्य वचन :-

धातुरोग से परेशान पुरुष प्राय यही कहते हैं की डॉक्टर साहब जब भी पेशाब करने जाता हूँ या मलत्याग करने जाता हूँ तो इंद्रिय में से चिपचिपा सा पदार्थ निकलता है जिससे इंद्रिय में शिथिलता आ जाती है | पेशाब में थोड़ी थोड़ी जलन होती है तथा इंद्रिय में दर्द भी होता है | भूख नहीं लगती, शरीर नही बनता, कुछ भी खाओ शरीर को नहीं लगता | गाल पिचक गये हैं | आँखे अंदर घँस गयी हैं | स्मरणशक्ति कमजोर हो गई है | चक्कर आते हैं | नींद नही आती, मन में घबराहट रहती है, मन उदास रहता है, किसी भी काम में मन नहीं लगता, जोड़ों में, शरीर में दर्द रहता है | उत्तेजना भी कम होती है और कभी अगर संबंध बनाने की कोशिश करते हैं तो शीघ्रपतन हो जाता है एवम् आकार भी कम हो गया लगता है |

प्राय: यह देखा जाता है कि धातु रोग के रोगी अत्यंत उदास एवम् उत्साहहीन रहते हैं उन्हें लगता है कि अभी उनकी सारी शक्ति नष्ट हो चुकी है अथवा नष्ट होती जा रही है एवम् वो विवाह के अथवा पत्नी के काबिल नहीं रहे |

परंतु ऐसा वास्तव में नहीं होता | आम रोग की तरह यह भी एक रोग है एवम् चिकित्सा लेने पर ठीक हो जाता है इसमे कुछ परेशान होने की या घबराने की ज़रूरत नहीं है |

धातुरोग एवम् भ्रम :-

1. कभी कभी पुरुष जब सैक्स संबंधी विचारों में खोये रहते हैं तो इंद्रिय में से चिपचिपा तरल पदार्थ निकलता है | इसे धातु रोग नहीं समझना चाहिए | यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है परंतु अगर यह तरल पदार्थ ज़्यादा मात्रा में निकलता है एवम् जल्दी ही निकल आता है तो यह शीघ्रपतन की निशानी भी हो सकता हैं |

2. मूत्र में से निकलने वाला हर पदार्थ धातु (वीर्य) नही होता कभी कभी मूत्र में फोस्फेट, कैल्शियम, प्रोटीन, पस सेल भी पाए जाते हैं | इसलिए मूत्र की जाँच करवा लें |

3. कभी कभी पेट खराब होने पर, कब्ज होने पर हम मलत्याग के समय ज़ोर लगाते है तो वीर्य निकल जाता है | यह कब्ज होने की वजह से होता है | अगर ऐसा कभी होता है तो इसे भी धातु रोग न समझे बल्कि पेट का इलाज करवाए | परंतु अगर हाँ बार बार मुलत्याग करते समय वीर्य निकलता है तो डॉक्टर से परामर्श ज़रूर करें |

* धातुरोग की चिकित्सा :-

ज़्यादा हस्तमैथुन, मैथुन, वीर्यनाश न करें, सैक्स संबंधित विचारों का ज़्यादा चिंतन न करें | ज़्यादा माँस, मच्छी, अन्डे न खाए | ज़्यादा तीखी, मसाले वाली गर्म चीजोन से परहेज करें | पेट सॉफ रखें, कब्ज न होने दें, ज़्यादा करके फलाहार एवम् शाकाहार लें | पानी ज़्यादा पिये | ठंडी चीजो का ज़्यादा सेवन करें, नशों से बचे | नीचे लिखी औषधियों में से किन्ही 2 या 3 का प्रयोग करें |

1. बबूल की कली का 4 ग्राम चूर्ण पानी से लें |
2. ईमली के बीज का 5 ग्राम चूर्ण पानी से लें |
3. सेमल की जड़ का रस 5 मि.लि. दिन में 2 बार लें |
4. शीतल चीनी का 1 ग्राम चूर्ण पानी से लें |
5. हल्दी का चूर्ण 4 ग्राम दिन में 1 बार पानी से लें |
6. रात को सोते समय 10 ग्राम इसबगोल का बुरादा लें |
7. गूंद कतीरा 10 ग्राम रात को 1 गिलास पानी में भिगोकर रख दें अगले दिन सुबह मिश्री डालके पी लें |

इस प्रकार धातुरोग (अगर हो तो) चिकित्सा लेने पर पूरी तरह ठीक हो जाता है | धातु रोग का डर मन में न बिठाए | अपने पहचान के चिकित्सक से मिलकर अपना इलाज ज़रूर करवाएँ |

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